Saturday, April 15, 2017

क्यूँ आज कहानी लिखता चला

सर्द सी सुबह और कोहरे की छाँव ,
भविष्य की किरण की क्षीड़ सी बांह ,
फिर भी उस लकीर की ओर बढ़ता गया,
क्यूँ  आज  कहानी लिखता चला | 

बचपन की नींव अब जीवन जीना सिखाती है ,
कितनी ठोकर खाई ,वही मेरी राह बनती है | 
जीवन का सारांश अँधेरे से उजाले तक कहता चला ,
क्यूँ  आज  कहानी लिखता चला | 

यौवन की बेला ने कितने हाथ पकडे,
मेरे जीवन ने उन्हें अपने समझे,
पर समय का कालचक्र ये बंधन छोड़ता चला ,
क्यूँ  आज  कहानी लिखता चला | 

आज की सुबह कुछ नयी तो नहीं थी,
पर बीते पलछिन दिमाग में उलझ से रहे थे,
कभी माँ की गोद , कभी नानी की कहानी याद आई ,
कभी प्रेम से भरे उसके नयन, तो कभी शिशु की किलकारी  याद आई | 

ये बावरा मन खोये हुए पलों को संजोता चला गया,
क्यूँ  आज  कहानी लिखता चला |




Monday, October 19, 2015

आईटी - तेरे खेल निराले



लैपटॉप पर थिरकती मेरी उँगलियाँ अब संगीत पर थिरकना भूल गई हैं |
काले डब्बे में सिमटी मेरी दुनिया अब न जाने क्यों प्रिय हो चली है |
चेट और फेसबुक पर प्रशंसा बटोरना मुझे बहुत अच्छे से आता है , लेकिन असल ज़िन्दगी मैं लोगों से मिलना ही भूल चुकी हूँ |

आईटी मैं काम करने वालों की ज़िन्दगी बाहरी दुनिया को बहुत रंगीन लगती है पर इसी रंग भरी दुनिया में अब मैं रंगहीन हो चली हूँ|
डेडलाइन और कॉल्स अब जीवन की वास्तविकता बन चुकी है, उसके परे भी कोई जीवन अब दिखना भी बंद हो गया|
गले मैं आईकार्ड डाले यहाँ  ज़िन्दगी सुबह से शाम क्यूबिकल तक सिमट गई है , कब दिन और रात होती है कोई नहीं जानता !

आईटी ने लोगों को बहुत कुछ दिया है और इस बात से मैं कभी इंकार नहीं करती , बड़े पैकेज से मिला अच्छा जीवन किसे नहीं सुहाता है ,
लेकिन चक्काचोंध से भरे इस जीवन ने जीवन से समय ही  उधार ले लिया|

 सीटीसी का जादू कभी मेरे सर भी बोला था , ऑफर लेटर मिलने की ख़ुशी तब बचपन में मिले किसी खिलोने से भी बड़ी थी ,
पर आज ना तो मेलबॉक्स में पड़ा ऑफर लेटर याद है और ना हर महीने क्रेडिट होती ५ अंकों वाली सैलरी
याद है तो बस वो खिलौना और उससे ज़िद कर लेने की कहानी |

हर रात सोते हुए बस यही उम्मीद रखती हूँ की कल का सूरज शायद कोई नयी दिशा लाएगा ,
पर सूरज की किरणों और पंछियों की चहचाहट से अब नींद खुलती ही कहाँ है , वो तो अब मोबाइल पर लगे अलार्म की मोहताज़ है |

और फिर शुरू होती वही भागदौड़ , फॉर्मल कपड़ो में चमचमाती मैं आईकार्ड को गले मैं डाल बस और ऑटो के धक्के खाते हुए फिर अपने क्यूबिकल तक पहुँचती हूँ और फिर आउटलुक पर मेल्स , कम्यूनिकेटर पर हरी बत्ती मेरा स्टेटस हो जाता है और डेडलाइन के खेल की मैं फिर एक खिलाडी बन जाती हूँ |